आज का राहु काल
नई शुरुआतें इस समय टालें
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आने वाले राहु काल
भारतीय घरों में सूर्योदय और सूर्यास्त के बीच एक छोटा सा अंतराल नई शुरुआतों से बचने के लिए छोड़ा जाता है; इसे ‘राहु काल’ कहते हैं। यह प्रायः एक से डेढ़ घंटे का होता है और स्थान, ऋतु व सूर्योदय‑सूर्यास्त के अनुसार प्रतिदिन बदलता है।
| वार | राहु काल खंड | विवरण |
|---|---|---|
| सोमवार | दूसरा | सुबह का सावधानी काल |
| मंगलवार | सातवाँ | देर दोपहर |
| बुधवार | पाँचवाँ | दोपहर |
| गुरुवार | छठा | दोपहर बाद |
| शुक्रवार | चौथा | देर सुबह |
| शनिवार | तीसरा | सुबह |
| रविवार | आठवाँ | शाम |
नोट: कुछ पुस्तकों में ‘स्थिर’ घड़ी‑समय भी सूचीबद्ध मिलते हैं; पर सूर्योदय→सूर्यास्त को आधार मानकर भाग करना अधिक स्थान‑अनुकूल और स्पष्ट रहता है।
खिड़की खुलने से पहले शुरू करें और जारी रखें, या उसके बाद शुरू करें। थोड़ा ठहरना मन को स्थिर करता है।
नहीं। शहर और तारीख़ के साथ समय बदलता रहता है क्योंकि सूर्योदय‑सूर्यास्त बदलते हैं। नियम तय रहता है, घड़ी नहीं।
आमतौर पर 60–90 मिनट का छोटा स्लॉट। मौसम और सूर्योदय‑सूर्यास्त के साथ अवधि बदलती है—लंबे दिनों में कुछ बढ़ती है, छोटे दिनों में घटती है।
ज़रूरी नहीं। परंपरा नए काम शुरू करने से रोकती है; जो काम चल रहा हो, उसे जारी रखा जा सकता है।
राहु काल सामान्यतः दिन के समय माना जाता है। रात के लिए अलग परंपराएँ/विचार होते हैं।
यह स्वर्भानु/राहु की कथा से जुड़ी है—छाया के कारण रोशनी में क्षणिक रुकावट का संकेत।
• ऋग्वेद 5.40 (स्वर्भानु) — ISTA
• विष्णु पुराण (राहु की कथा) — ISTA
• बी. वी. रमन, मुहूर्त — Google Books
• कलाप्रकाशिका — Archive.org